ज़बूर – 145
ऐ मेरे शाह ख़ुदावन्दा
वडआई तेरी करंगा
मैं सदा तीक बयान करां के
तेरा है मुबारक ना
मैं तैनु ही ख़ुदावन्दा
हर रोज़ मुबारक आखॅंगा
हमेशा तेरे नाम ही दी
जाँ मेरी उस्तत (तारीफ़) गावेगी
ख़ुदा बाज़ुर्ग (सर्वश्रेष्ठ) ते फाइएक है बेहाद तारीफ दे लायक है
बाज़ुर्गी (महानता) ओह्दी ज़ाहर है जो अक़्लों समझों बाहर है