रात अन्धेरी दूर कहीं
एक दीप सुहाना जले
देख के तारा सिज़दा करने
बैतलहम को चलें
1. सारे जहाँ से प्यारा हमें चरनी में ही मिला
गऊशाले में प्रभु मुक्तिदाता मिला-2
नाम उसी का मेरी ज़ुबां पर, चैन उसी से मिले
2. आया जहाँ में अपनों की खातिर हमसे प्यार किया
हम को बचाने क्या न किया और ख़ुद कुरबान हुआ-2
दिल में हमारे ज्योति उसी की हरदम तेज जले
3. फ़ानी जहाँ की खुशियाँ कहीं कर दें न हमें बरबाद
ख़ुद को मिटा के होंगे नहीं दोबारा कभी आजाद-2
ऐसी समां न हरगिज़ हो कि उसमें गुल न खिलें